आलस्य का मार्ग

आलस शब्द कितना सरल और साधारण लगता है मगर यह अपने अंदर भाव का विशाल सागर धन किया हुआ है जिसकी लहरें मन को विनाश की तरफ धीरे-धीरे अग्रसर करती हैं और हमें पता भी नहीं चलता इतिहास के संदर्भों को अगर हम खंगाले तो ऐसे असंख्य उदाहरण हमें मिलते हैं आलस की प्रवृत्ति सभी उम्र के व्यक्तियों में दिखाई पड़ती है बस कुछ गुड़ी व्यक्ति इसके लाभ और हानि को अच्छी प्रकार से जानते हैं इसीलिए इसका त्याग कर परिश्रम का मार्ग चुनते हैं और स्वयं को समृद्धि की तरफ मोड़ते हैं
उसने सिर्फ हमारी दिनचर्या को प्रभावित करता है बल्कि हमारी प्रगति को भी रोकता है यह हमारे अंदर आराम करने की प्रवृत्ति को बढ़ाता है और परिश्रम के महत्व को धीरे-धीरे कम करता है जैसे ही हम परिश्रम की तरफ से अपना मुंह मोड़ने लगते हैं वैसे वैसे ही हमारे लिए विनाश के द्वार खुले प्रारंभ हो जाते हैं बड़े-बड़े तो ऐसा ही कहते हैं आला से हमारे अंदर वह हर प्रकार की विकृतियां जागृत करता है जो श्रम करने से हमें बचाती हैं या कार्य करने से रोकती हो क्योंकि जब हम कार्य करते हैं तो हमारे शरीर को विभिन्न प्रकार के कष्ट भी उठाने पड़ते हैं पर यह कष्ट हमें शारीरिक रूप से काफी हद तक सुरक्षित भी रखते हैं और शरीर को वरिष्ठ एवं मजबूत भी बनाते हैं जो प्रकृति के साथ अपना तारतम में बैठा सके
आलसी होना परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है जब हमारा जीवन सरलता से चलने लगता है तब इस गुण का विकास तीव्रता से होता है यह हमारे अंदर संघर्ष करने की क्षमताओं को कम कर देता है हमें धीरे धीरे चढ़ता की तरफ ले जाता है ऐसा नहीं है आलस करने वाला व्यक्ति इसके नफे और नुकसान से परिचित ना हो पर उसका वर्तमान जीवन जब बिना किसी परिश्रम के ही आराम से चल रहा हो तो फिर परिश्रम क्यों करना यही प्रवृत्ति हमें गुलामी की तरफ मोड़ती चली जाती है
हम अगर विचार करें तो पाएंगे आलस हमारी प्रवृत्तयों का यह प्रारूप है जो हमें जन्मजात प्राप्त होता है पर हम अपनी शिक्षा और संस्कारों के बदौलत इस प्रवृत्ति पर थोड़ा अंकुश और से लगा सकते हैं जो हमारी प्रगति में सहायक भी होगा और हमारे स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभकारी होगा इसलिए हमें अपने आप को बस थोड़ा सा मजबूत करना है धीरे-धीरे अपनी दिनचर्या को नियमित करना है जिससे आलस स्वयं ही कब्ज ओर बढ़ता चला जाएगा

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