Shabd aur samajh

शब्द और समझ
शब्दों के माध्यम से जब किसी भाव को दर्शना चाहा तो बस कुछ कदम चलने के बाद हिम्मत दम तोड़ने लगी शायद यह मेरे पास हो रहे शब्दों के अकाल की स्थिति का ही एक रूप था मस्तिष्क में बहुत से भाव उठ रहे थे परंतु किसी प्रकार का कोई शाब्दिक विकल्प नहीं था जिससे उन्हें प्रगट किया जाए यह स्थिति काफी कष्टदायक होती है पर समस्या का समाधान ढूंढने की प्रवत्ति ही तो हमें मानव बनाती है मानव का पहला कदम ही समस्याओं का समाधान से आरंभ हुआ था इतिहास तो कुछ ऐसा ही बताता है मानना या ना मानना हम पर निर्भर करता है पर सत्य तो यही है अतः हमें भी खुद के अव्यक्त सागर को व्यक्त करने का मार्ग तलाश ना ही होगा यह तलाश हमारी अपनी जीवन यात्रा को और अधिक सार्थक बनाएगी
अपनी बातों को कहने के लिए शब्दों की आवश्यकता होती है जितना अधिक शब्दों का ज्ञान होगा बात भी उतनी असरदार होगी मान्यता तो यही है हमें स्कूलों में शब्द भंडार बढ़ाने को कहा जाता है परंतु गौर करने लायक तथ्य भी है जो कभी स्कूल नहीं गए वह भी तो अपने अंतःकरण में चल रहे भाव को स्पष्ट आकार देते होंगे उन्हें शब्द ज्ञान कैसे मिलता होगा इस प्रकार की ऊहा पोह की स्थिति में दो प्रकार के विकल्प होते हैं पहला लोक ज्ञान जो व्यक्ति स्वता अपने परिवेश से सीखता है इसमें उसे किसी साहित्य को पढ़ने या पाठशाला में जाने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि समाज में रहकर समाज के लोगों से सीखता है कहा भी गया है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तभी तो व्यक्ति के विकास पर उसके परिवेश का काफी कुछ निर्भर करता है उसी परिवेश में प्रचलित भाषा के माध्यम से खुद को व्यक्त करता है जो व्यावहारिकता के अधिक नजदीक प्रक्रिया मानी जाती है
दूसरा विकास विकल्प सैद्धांतिक है इसमें व्यक्ति सामाजिक ज्ञान के साथ-साथ स्कूली ज्ञान भी प्राप्त करता है जो व्यक्ति की भाषा को मधुर प्रखर और ओजपूर्ण बनाता है यह प्रक्रिया वैसे ही है जैसे मिट्टी को अच्छे से गूथ कर बनायी गई एक सुंदर मूर्तिशिल्प हो यहां पर व्यक्ति अपने शब्द भंडार में मुहावरों कहावतों व्याकरण का ज्ञान प्राप्त करता है जो उसके ज्ञान को और अधिक बढ़ा देने के साथ संपूर्ण शब्दावली को अलंकृत भी करती है जो सशक्त अभिव्यक्ति देने में सहायक होती है परंतु इतना सब जानने के बाद भी अगर समस्या जस के तस बनी है तो फिर विषय के अध्ययन या समझ की कमी की तरफ एक इशारा भी हो सकता है
अंतःकरण में चल रहे घटनाक्रम की समझ भी हमें स्पष्ट अभिव्यक्ति प्रदान करती है जब चीजों की समझ हमारे अंदर जैसे-जैसे बढ़ती है वैसे वैसे शब्द आकार आते जाते हैं और अभिव्यक्ति साकार रूप लेने लगती है मात्र शब्दों के अनुशीलन से खुद को व्यक्त करने की दौड़ आगे नहीं बढ़ सकती इसके लिए हमारी समझ और सोचने समझने की शक्ति का विकास होना भी आवश्यक होता है शब्द तो मात्र भवन बनाने की सामग्री हैं उनसे किस प्रकार का भवन बनाना है यह शब्दों के शिल्पी को अच्छी तरह से पता होना चाहिए अन्यथा वह कुछ कदम चल कर  वह दम तोड़ देगा
सफल व्यक्ति के लिए चीजों की समझ घटनाक्रम का ज्ञान आवश्यक है शब्द तो धीरे-धीरे अपना आकार ले ही लेंगे बस भाषा शैली सामाजिक और स्कूली ज्ञान की अलग हो सकती है पर अभिव्यक्ति लंबी दौड़ में दौड़ना है तो हमारे अपने अंदर समाज का विकास करना आवश्यक है

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