चल रहे थे फूलों पर मगर कांटे मिले
जो सोचा नहीं था कभी ऐसे इरादे रहें
बीच सफर में लगा हम कितने अधूरे रहे
तुम मिले तो ऐसा लगा अब हम पूरे हुए..
तुम्हारे क़दमों की आहट सुनी जो कानों ने
पायल की रुनझुन घुली जो इन हवाओं में
मदहोश होकर ये फिजाएं भी कहने लगी
अब तो खो जाओ मेरे ही ख्यालों में.....
जिन्दगी भटकी हुई बस इक कहानी थी
कालिख में घुली बस कुछ सफेदी थी
तुम मिले तो ऐसा लगा
जैसे हम पर रंगों कि बारिश हुई हो.....
बहारें भी अब हमको बुलाने लगीं
गीत उसकी प्रीत के अब सुनने लगीं
तुमको पाकर अब ऐसा लगा
जैसे तपते सावन को बूंदों का सहारा मिला....
नजर भी तुमसे मिलकर पावन हुई
ह्रदय में जो था खालीपन ओ भी पूरा हुआ
गढ़े थे जो अधूरे प्रतिमान ओ अब पूरे हुए
तुम्हे पाकर ऐसा लगा जीवन अब पूरा हुआ....
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