आदत

जो कहते थे मोहब्बत है सच से कीमत चाहे जो भी हो 
वो उजालो मैं भी अंधेरों के साए में मिले
जब सच  ने मांग ली कीमत अपनी
दिन में भी अपना चेहरा छिपाते मिले छिपाते मिले....

दरबार लगाकर आदेश देना उनकी आदत में था
कुछ देर के लिए ही सही साथ चलना उनकी आदत में था
अजीब किस्से थे उनके किस पर भरोसा करूं 
शायद कुछ दूर चलकर छोड़ देना उनकी आदत में था उनकी आदत में था.....

वह खुद को मेरी आदत बनाना जानते थे 
दिल लगाकर दिल चुराना जानते थे
बीच सफर में हाथ थामकर कुछ दूर चलना जानते थे
उनकी आदत थी हमदर्द बनकर दर्द देना जानते थे.....

नजर से चोट देने में माहिर थे
विश्वास करके तोड़ देने के लिए जगजाहिर थे
भरोसा और उन पर रहने ही दो
को भरोसे को तोड़कर दूर जाने में बड़े माहिर थे.....

आदत का क्या वो तो मजबूर करती है
बात उनके भरोसे की क्या वह तो हर रोज करती है 
वो बॉक्स देती हैं इनायत मेरी जिंदगी को
जिंदगी के भरोसे क्या....

यह वक्त की खता नहीं है फैसला मेरा था
मोहब्बत की कमी नहीं है फिर भी मैं अधूरा था
प्यार में एक तरफ दौड़ने से क्या फायदा
जब दौड़ने वाला मैं अकेला ही था अकेला ही था.....

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